लोकसभा विधानसभा के चुनाव ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ पर संसदीय समिति में आम राय नहीं
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लोकसभा विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने को लेकर संसदीय समिति में चर्चा हुई, लेकिन आम राय नहीं बन पाई है. खासकर विपक्ष ने प्रस्ताव पर कई सवाल खड़े किए हैं.
नई दिल्ली: लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाने के प्रधानमंत्री के प्रस्ताव पर संसदीय समिति की संसद परिसर में सोमवार को एक महत्वपूर्ण बैठक हुई. बैठक में बीजेपी सांसदों ने ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के प्रधानमंत्री की सोच को आगे बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन विपक्षी सांसदों ने पीएम मोदी के इस आइडिया पर सवाल उठाए.
रविवार को अंग्रेज़ी समाचार चैनल ‘टाइम्स नाऊ’ को दिए एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव की तुलना होली के त्योहार से की और कहा कि होली की तरह देश में लोकसभा और विधानसभा चुनावों की तारीख पहले से तय की जाए. प्रधानमंत्री ने कहा, ‘होली में हम एक-दूसरे को रंग लगाते हैं, कपड़े गंदे करते हैं. कुछ समय के लिए एक दूसरे पर कीचड़ फेंकते हैं, कालिख लगाते हैं, लेकिन फिर लोग साफ़ होकर एक दूसरे के गले लगते हैं. इसी तरह चुनाव भी एक तय समय पर होने चाहिए, जिससे आरोप-प्रत्यारोप एक बार ही हों और फिर 5 साल तक हम काम कर सकें’.
लेकिन 24 घंटे के भीतर इस मसले पर कानून और न्याय के मामलों की संसदीय समिति में आम राय तक नहीं दिखी. सूत्रों ने एनडीटीवी को बताया कि कई विपक्षी दल पीएम मोदी की इस राय से सहमत नहीं दिखे. विपक्ष की राय के मुताबिक एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव व्यावहारिक नहीं हैं, क्योकि अलग-अलग राज्यों के राजनीतिक हालात अलग-अलग हैं. साथ ही, इसके लिए भारत के संविधान में इतना बड़ा संशोधन करना ठीक नहीं होगा.
इसके पहले कानून मंत्रालय के विधायी सचिव ने बैठक में कहा कि संविधान में बड़े संशोधन के बिना ये संभव नहीं हो पाएगा. सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा, ‘क्या सरकार को लागू करने के लिए ज़रूरी संविधान की धारा 356 को खत्म करेगी? इसके लिए संविधान में कई बड़े बदलाव करने होंगे. इसे लागू करना व्यवहारिक नहीं होगा.’ चुनाव आयोग ने इस मामले में सांसदों से लिखित राय मांगी है.
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