आज खत्म होगा कर्नाटक का ‘नाटक’, इस तरह बची रह सकती है येद्दयुरप्पा की कुर्सी
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येद्दयुरप्पा को सुप्रीम कोर्ट की ओर से शनिवार शाम चार बजे तक सदन में बहुमत साबित करने का आदेश मिला है।
नई दिल्ली । कर्नाटक विधानसभा चुनाव के पहले से शुरू हुई राजनीतिक गहमा-गहमी अब भी थमने का नाम नहीं ले रही है। हालांकि शनिवार शाम चार बजे तक यह स्पष्ट हो जाएगा कि आखिरकार इस राज्य की सत्ता पर किसका हक होगा। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येद्दयुरप्पा को सुप्रीम कोर्ट की ओर से शनिवार शाम चार बजे तक सदन में बहुमत साबित करने का आदेश मिला है।
बता दें कि 12 मई को हुए चुनाव के नतीजे 15 मई को आ तो गए, लेकिन इसके आधार पर कोई भी पार्टी अकेले दम पर सरकार बनाने में सक्षम नहीं है। एक ओर जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन करने के बाद सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं, दो दूसरी ओर सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी भाजपा ने राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का प्रस्ताव पेश किया। इस क्रम में येद्दयुरप्पा ने राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ भी ले ली है।
चुनाव बाद गठबंधन, सबसे बड़े दल से नीचे: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, चुनाव बाद हुए गठबंधन का स्थान सबसे बड़े दल से नीचे होता है। अगर उस दल के पास बहुमत है तो कोई समस्या ही नहीं है। अगर बहुमत न हो तो दो स्थिति होती हैं चुनाव पूर्व गठबंधन और चुनाव बाद का गठबंधन। चुनाव पूर्व गठबंधन के पास अगर बहुमत है तो उसे ही सरकार बनाने के लिए बुलाया जाएगा। लेकिन चुनाव बाद के गठबंधन की स्थिति वो नहीं होती जो चुनाव पूर्व गठबंधन की होती है।
बहुमत के लिए 112 विधायक चाहिए, जबकि भाजपा के पास 104 विधायक हैं। लेकिन कांग्रेस के 78 और जेडीएस के 38 विधायक मिलाकर कुल 116 विधायक हैं। साथ ही कांग्रेस ने कहा है कि उसे दो निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन है।
… तो भाजपा की जीत पक्की
– कांग्रेस-जेडीएस के गायब माने जा रहे 14 विधायक यदि सदन की कार्यवाही से गैरहाजिर रहते हैं या फिर येद्दुयरप्पा के पक्ष में वोट देते हैं।
– कांग्रेस व जेडीएस के 31 लिंगायत विधायक जातीय आधार पर येद्दयुरप्पा के पक्ष में आ जाते हैं।
– कांग्रेस-जेडीएस के दो तिहाई विधायकों यानी कांग्रेस के 52 और जेडीएस के 26 विधायकों को वह अपने खेमे में कर ले। यह भी विकल्प है कि यदि दो तिहाई सदस्य बागी होते हैं तो दलबदल कानून लागू नहीं होगा। हालांकि इसकी संभावना सबसे कम है
फिर से दोहराएगा 2011!
2011 में येद्दयुरप्पा सरकार को बचाने वाले केजी बोपैया को कोर्ट के आदेश पर राज्यपाल वजुभाई वाला ने विधानसभा का प्रोटेम स्पीकर (अस्थायी अध्यक्ष) बना दिया। बोपैया ने 2011 में तत्कालीन येद्दयुरप्पा सरकार को बचाने के लिए 16 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया था। कांग्रेस-जदएस ने सुप्रीम कोर्ट में इसका भी विरोध किया। जिसकी सुनवाई आज होगी। कांग्रेस के अनुसार, विधानसभा के सबसे वरिष्ठ सदस्य को यह पद दिया जाता है, इसलिए आरवी देशपांडे को यह पद मिलना चाहिए। इस बीच राज्यपाल ने बोपैया को अस्थायी स्पीकर की शपथ दिला दी।
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