Main Menu

जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन के एक माह के 20 दिन बंद में ही बीते

पीडीपी -भाजपा गठबंधन सरकार

पीडीपी -भाजपा गठबंधन सरकार को गिरने और राज्यपाल एनएन वोहरा को जम्मू-कश्मीर के शासन की बागडोर संभाले एक माह बीत गया है।

श्रीनगर। पीडीपी -भाजपा गठबंधन सरकार को गिरने और राज्यपाल एनएन वोहरा को जम्मू-कश्मीर के शासन की बागडोर संभाले एक माह बीत गया है। आतंकवाद के मोर्चे पर बीते एक माह में कोई बड़ी सफलता अभी तक राज्य सरकार को नहीं मिली है। बंद और हड़ताल से प्रत्यक्ष राहत नजर आती है, लेकिन दिनों को अगर गिना जाए तो अलग-अलग जिलों में बीते एक माह में 20 दिन बंद में निकल गए हैं।

वर्ष 2008 में पहली बार जम्मू कश्मीर के राज्यपाल बने एनएन वोहरा को इस वर्ष 18 जून को पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार गिरने के बाद जम्मू कश्मीर में शासन की बागडोर संभालने का चौथा मौका मिला है। यह अब तक का उनके लिए सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण दौर साबित हो रहा है। उन पर प्रशासनिक तंत्र को ढर्रे पर लाने से लेकर कानून व्यवस्था की स्थिति बहाल करने और लोगों की उम्मीदों को पूरा करने का बोझ है, जो कम होता नजर नहीं आ रहा है।

गृृह विभाग के संबंधित अधिकारियों के मुताबिक, मई में रमजान सीजफायर लागू होने से लेकर जून में उसके समाप्त होने तक वादी में पथराव की 90 घटनाएं हुई थी। लेकिन 16 जून के बाद से 16 जुलाई तक पथराव की 95 घटनाएं दर्ज हुई हैं। राज्यपाल एनएन वोहरा ने जम्मू कश्मीर में शासन की बागडोर गत 18 जून को संभाली है। रमजान सीजफायर के दौरान आतंकी हिंसा से संबंधित 80 वारदातें हुई थी। लेकिन बीते एक माह के दौरान यह घटकर 47 रह गई हैं। लेकिन जब इन घटनाओं का आकलन किया गया तो संबंधित सुरक्षा अधिकारी भी हैरान रह गए, क्योंकि रमजान सीजफायर के दौरान आधी से ज्यादा आतंकी हिंसा की घटनाएं अचानक किसी जगह फायरिंग करने या ग्रेनेड हमले से संबंधित थी। इन वारदातों को अंजाम देने के लिए कोई ज्यादा ट्रेनिंग या योजना की जरूरत नहीं होती। बीते माह जो वारदातें हुई, उन्हें आतंकियों ने सोच-समझकर पूरी योजना के साथ अंजाम दिया है।

24 आतंकी मारे गए

राज्यपाल शासन लागू होने के बाद 23 जुलाई तक घाटी में 24 आतंकी, नौ सुरक्षाकर्मी शहीद हुए और 12 नागरिक मारे गए हैं। मारे गए नागरिकों में सात की मौत कानून व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के लिए सुरक्षाबलों द्वारा की गई फायरिंग या फिर मुठभेेड़ के दौरान भड़की हिंसा में सुरक्षाबलों की गोली से ही हुई है। लेकिन राज्यपाल शासन लागू होने से पहले एक माह के दौरान सिर्फ चार नागरिक पथराव या मुठभेड़ के दौरान सुरक्षाबलों की फायरिंग में मारे गए हैं।

19 लड़कों ने चुनी आतंकवाद की राह

आतंकी हिंसा से कहीं ज्यादा जरूरी राज्यपाल के लिए स्थानीय युवकों की आतंकी संगठन में भर्ती रोकना है। इसके लिए उन्होंने राज्य में तैनात सभी वरिष्ठ सुरक्षाधिकारियों के साथ दो बार बैठक की। सीआरपीएफ और सेना के अधिकारियों से अलग-अलग भी मुलाकात की। लेकिन तमाम दावों के बावजूद भर्ती रुक नहीं रही है। राज्यपाल शासन लागू होने के बाद करीब 19 लड़कों ने आतंकवाद का रास्ता चुना है।

बंद की सियासत जारी

कश्मीर की आर्थिक और सामाजिक रफ्तार में अक्सर रुकावट बनने वाली अलगाववादियों की हड़ताली सियासत बेशक पहले से कम हुई है लेकिन बंद नहीं हुई है। 20 जून के बाद से अब तक दक्षिण कश्मीर के त्राल में करीब सात दिन बंद में बीते हैं जबकि पुलवामा, कुलगाम और शोपियां में चार से छह दिन बंद और हड़ताल की भेंट चढ़े हैं। इस दौरान पूरी वादी में चार दिन पूर्ण बंद रहा है।

बाबू पहुंचने लगे आफिस, परियोजनाओं ने पकड़ी रफ्तार

प्रशासनिक स्तर पर राज्यपाल एनएन वोहरा के शासन का असर साफ नजर आ रहा है। 22 साल से लंबित सरकारी कर्मियों की वेतन विसंगतियों का मामला हल हो गया। ग्राम सेवकों का यात्रा भत्ता बढ़ गया। सरकारी कार्यालयों में गायब रहने वाले नौकरशाह और बाबू लोग अब नियमित होने लगे हैं। सरकारी कार्यालय में कर्मचारियों की उपस्थिति का औसत बीते एक माह के दौरान 45 से बढ़कर 85 प्रतिशत तक चला गया है। बिजली, पुल और सड़क निर्माण की रुकी पड़ी परियोजनाएं फिर गति पकड़ रही हैं। सरकारी विभागों में छिपे भ्रष्ट तत्वों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो चुकी है और बीते एक सप्ताह के दौरान दो बड़े अधिकारियों के घरों से करोड़ों रुपये की संपत्ति जब्त की गई है। बीते चार सालों में किसी सरकारी अधिकारी के घर पर छापा और आय से अधिक संपत्ति बरामदगी का यह पहला मामला है। झेलम में ड्रेजिंग के कथित घोटाले की जांच हो रही है तो जम्मू और श्रीनगर में एम्स की स्थापना की दिशा में काम भी शुरु हो गया है। जम्मू संभाग में उज्ज बैराज योजना को भी मंजूरी मिल गई है।

राज्यपाल से सभी को उम्मीद

पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार के गिरने के बाद राज्य में लोकतंत्र को फिर से बहाल करना और लोगों में उसके प्रति आस्था पैदा करना भी मौजूदा राज्यपाल के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से लेकर प्रदेश कांग्रेस प्रमुख जीए मीर भी यही मानते हैं और बिना किसी हिचकिचाहट के उन्होंने कहा है कि वोहरा साहब से लोगों को बड़ी उम्मीद हैं। उनके पास एक खासा अनुभव है, मौजूदा हालात में जब यहां का सुरक्षा परिदृश्य पूरी तरह बिगड़ा है, वह कैसे लोकतंत्र का बहाल करते हैं, यह देखना है। खैर, विधानसभा कब बहाल होती है, यह तो पता नहीं है। लेकिन राज्यपाल एनएन वोहरा ने राज्य में शहरी निकायों के चुनाव जो अंतिम बार वर्ष 2005 में हुए थे, फिर से कराने की कवायद शुरू कर दी है। पंचायत चुनाव कराने के लिए भी उन्होंने ग्रामीण विकास विभाग को निर्देश जारी कर दिया है। अगर यह दोनों चुनाव सफलतापूर्वक हो जाते हैं तो राज्य में संसदीय और विधानसभा चुनावों के सफल आयोजन की जमीन भी तैयार होगी जो राज्यपाल एनएन वोहरा के लिए राहत की बात होगी।






Comments are Closed