माया का मुसलमान प्रेम क्या बनेगा सत्ता की चाभी?
इंडिया वोट कर टीम के अनुसार
यूपी के चुनाव में सर्वाधिक सौ टिकट मुसलमानों को देने के बावजूद बसपा प्रमुख मायावती को मुसलमान वोटरों के आगे कसम खानी पड़ रही है कि वे चुनाव बाद भाजपा के साथ एक बार फिर से सरकार नहीं बनाएंगी, इसके बजाय विपक्ष में बैठेंगी. इसके पीछे एक सच्चाई है कि मायावती यूपी में तीन बार भाजपा के साथ चल चुकी हैं जिसके कारण मुसलमान उन पर यकीन करने में हिचक रहे हैं. इस हिचक का कारण मायावती का वो अवसरवाद है जिसके कारण बसपा यूपी तक सिमट कर सिर्फ चुनाव लड़ने वाली पार्टी हो गई और हिंदी पट्टी में दलित आंदोलन अपने मकसद से भटक कर बेजान हो गया है|
अगर मायावती सत्ता में नहीं हैं तो दिल्ली में रहती हैं. आम दिनों में पार्टी दफ्तर के फाटक बंद रहते हैं. बसपा दलितों की किसी समस्या के विरोध में नहीं सिर्फ मायावती के अपमान के अवसर पर आंदोलन करती है.
सीबीआई की सक्रियता पार्टी की चर्चा तभी होती है जब चुनाव आता है और टिकट बंटने लगते हैं या कोई टिकट बेचने का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ जाता है. चुनाव के बाद पार्टी टूटती है या आय से अधिक संपत्ति की पड़ताल करने के लिए केंद्र की सरकार सीबीआई को सक्रिय करती है. इसके अलावा दलित वोट बैंक को एकजुट रखने के लिए हर महीने जोनल-कोऑर्डिनेटरों की बैठक होती है लेकिन उन बैठकों में क्या होता है, पार्टी के रहस्यमय लेकिन सख्त प्रशासनिक ढांचे के कारण कोई नहीं जान पाता|
Source : One India Hindi
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