अकेले खेवनहार के भरोसे चुनावी नैया
इंडिया वोट कर टीम के अनुसार
विधानसभा चुनाव की दहलीज पर खड़े उत्तराखंड में दोबारा सत्ता पाने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रही कांग्रेस में फिलहाल मुख्यमंत्री हरीश रावत को किसी तरह की चुनौती मिलती नहीं दिख रही। कभी सूबे में कई क्षत्रपों वाली पार्टी रही कांग्रेस में पिछले ढाई-तीन साल में परिस्थितियों ने इस कदर करवट बदली कि अब हरीश रावत पार्टी की अकेले रहनुमाई करते नजर आ रहे हैं। उस पर, जिस तरह वह पार्टी में बड़ी टूट के बावजूद सरकार बचाने में सफल रहे, उन्होंने अपने सियासी कद में इतना इजाफा कर लिया है कि फिलहाल उत्तराखंड में हरदा कांग्रेस की चुनावी नैया के एकमात्र खेवनहार बन गए हैं।
कांग्रेस आलाकमान ने तब अप्रत्याशित फैसला लेते हुए तत्कालीन नैनीताल सांसद और बुजुर्ग पार्टी नेता नारायण दत्त तिवारी को रावत पर तरजीह देते हुए मुख्यमंत्री बना दिया। रावत खेमे की ओर से इस पर तीखी प्रतिक्रिया भी दी गई। जगह-जगह पुतले जलाए गए और विरोध प्रदर्शन हुए। हालांकि तब तिवारी अपने लंबे राजनैतिक अनुभव के सहारे पूरे पांच साल तक पद पर बने रहे मगर इस दौरान पार्टी के भीतर उथल-पुथल का दौर कभी भी शांत नहीं हुआ। शायद ही कोई महीना ऐसा गुजरा हो, जब सत्ता के गलियारों में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर चर्चाएं न उठी हों। कांग्रेस में यह सिलसिला पूरे पांच साल तक चलता रहा।
अब इसे संयोग कहें या फिर सियासत की अनूठी चाल, उत्तराखंड में सत्तासीन कांग्रेस के लिए विधानसभा चुनाव में एकमात्र चेहरा हरीश रावत ही बनकर उभरे हैं। हालांकि ऐसा मुख्यमंत्री होने के नाते लाजिमी भी है मगर पार्टी के भीतर जिस तरह शक्ति संतुलन मौजूदा दौर में बिल्कुल एक ध्रुवीय नजर आ रहा है, ऐसा पहले कभी भी नहीं रहा। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के लगभग सवा साल बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव के समय हरीश रावत पार्टी प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी निभा रहे थे और उन्हीं के नेतृत्व में कांग्रेस ने चुनाव में जीत हासिल की। स्वाभाविक रूप से मुख्यमंत्री पद पर दावा भी उनका ही बनता था।
No One Challenge To CM Rawat In Party
Source : Dainik Jagran
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